धर्मयुग पत्रिका का आबिद सुरति कृत ढब्बूजी अपने व्यंग और कटाक्ष से हिंदी पाठकों के दिलों पे शुरुआती दिनों से ही राज करने लगा था।
ढब्बूजी की वेशभूषा आबिद सुरती साहब ने अपने वकील पिता से ली थी। ढब्बू जी का आगमन वैसे बटुक भाई (यानी बौने मियां) के नाम से गुजराती पत्रिका "चेत मछंदर" में हुआ था। पर पहले महीने ही इसकी आलोचना हुई, 3 महीने बाद ही बंद। दुःखद शुरुआत।
ढब्बूजी की वेशभूषा आबिद सुरती साहब ने अपने वकील पिता से ली थी। ढब्बू जी का आगमन वैसे बटुक भाई (यानी बौने मियां) के नाम से गुजराती पत्रिका "चेत मछंदर" में हुआ था। पर पहले महीने ही इसकी आलोचना हुई, 3 महीने बाद ही बंद। दुःखद शुरुआत।
संयोग से 1963 में धर्मयुग के संपादक धर्मवीर भारती ने, जो फैंटम आदि कई विदेशी कार्टून से असन्तुष्ट हो, आबिद साहब से कोई भारतीय पात्र बनाने को कहा। इस एकदम से मिली पेशकश के चलते आबिद साहब को कुछ और नहीं सूझा तो उन्होंने उन्हीं 3 महीने के छपे कार्टून को नया नाम और लिपि बदल पेश कर दिया। जो चरित्र सिर्फ कुछ हफ़्तों के लिए फ़िलर की तरह इस्तेमाल होना था, जबतक एक प्रतिष्टित कलाकार बना के देते, शुरू से ही पात्र की लोकप्रियता इतनी बढ़ी कि वो पत्रिका का एक नियमित फीचर बन गया।
बाद में यह डायमंड कॉमिक्स में भी कॉमिक्स के रूप आया।
अमिताभ बच्चन जी भी ढब्बू जी के फैन हैं।
आबिद सुरती बताते हैं, ढब्बू जी की लोकप्रियता का आलम यह था कि ओशो रजनीश भी अपने प्रवचन में अक्सर ढब्बूजी के चुटकुले सुनाया करते थे। यही नहीं, मशहूर गायिका आशा भोंसले भी जब कभी धर्मयुग पत्रिका में इंटरव्यू देती थीं, तो सबसे पहले उन्हें ढब्बू जी ही याद आते थे। एक बार जब वह पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी से मिले, तो वे भी देर तक आबिद सुरती से हाथ मिलाते रहे और ढब्बू जी को याद कर-कर के हंसते रहे।
एक कार्टून का जिक्र करते हुए आबिद जी ने एक interview में बताया था कि ईद मनाने के लिए ढब्बू जी एक किलोग्राम मुर्गा घर ले जा रहा था। रास्ते में चील ने हाथ से छीन लिया। ढब्बू नाच रहा था तो मित्र ने पूछा कि क्यूं नाच रहे हो, तुम्हें दुखी होना चाहिए। ढब्बू ने उत्तर दिया कि चील के पास मांस है। रेसेपी तो मेरे घर में है। इसकी व्याख्या आचार्य रजनीश ने किया था कि लोग धर्म के मुर्दे चिपकाकर बैठे हैं, पर धर्म का मूल तत्व तो संतों के पास है।
खुद ही पढ़, इनका आकलन कीजिये। प्रस्तुत है, कुछ पैनल:
विशेष आभार अनुराग दीक्षित भाई को, जिन्होंने अपने खजाने के ये मोती हम सब के साथ शेयर किया है।
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Aapka aur anurag bhai ka bahut bahut dhanyawaad.....👍👍👍👍👍👍
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ReplyDeletePBC bhai kya aap apna email id denge mujhe bhi kuch share karna hai
ReplyDeleteThanxs PBC bro for sharing.
ReplyDeleteThanks for sharing...appretiate it bro
ReplyDeleteबहोत बहोत शुक्रिया !!!
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ReplyDeleteआपका और अनुराग भाई का बहुत बहुत धन्यवाद
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